Thursday, 27 June 2013

सजा

मैंने बहुत बार मारना  चाहां उसे 
वो मरती ही नहीं 
क्या है वो -?
मेरे मन की 
या तेरी तन की चाहत 
दोनों का सामजंस्य 
निभाना 
जीवन भर 
पर फिर भी 
तेरी चाहत मेरी चाहत 
मित्र न बन सके 
मुहब्बत 
इश्क 
प्रेम 
जूनून तो क्या बन सकेंगे 
मुझमे कुछ भरा है 
उसी की तलाश में 
बेचैन हूँ 
कौन सी धारा 
लगनी चाहिए मुझ पर 
और क्या सजा निर्धरित् मिले 

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