Saturday, 29 June 2013

अब और नहीं

सोच रहे थे बेचारे वो हम नया कुछ देंगे इस जकड़े हुए समाज को 
पर ये क्यूँ दिल टूट रहे है अब  युवाओं के 
लीविंग रिलेशन शिप में भी -
एक दूजे को छोड़ रहे 
गे -लेस्बियन बन न्याय मांग रहे है 
जीना का नया रास्ता जोड़ रहे 
ये   सारी दुनिया यूँ ही चलती जा रही है 
आपदाओं की तीव्रताभी बढती जा रही है 
कोई भी आत्मग्लानि के तट पर ही नहीं 
यूँ कुदरत का अन्याय भी कहता है कोई 
वो तो सोचने समझने का वक्त दे रही है 


अब और नहीं -की चित्कार कर उठी ये प्रकृति 
कैसे समझेंगे  नीयत नीति एक ही है फलती 
चले आये सभी अपने गंदे  चोले  उतार कर -
सत्य के वस्त्र आपकी हमारी - प्रतीक्षा में है
जो हमारे अन्दर है उसे बाहर ढूँढ रहे 

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