Wednesday, 7 August 2013

पाण्डित्य किस काम का ,--

पाण्डित्य किस काम का ,

सिर्फ दुनिया को मूर्ख बनाने को

ये आन्दोलन सिर्फ नाम का

दुखियो को स्वप्न दिखाने को

नहीं होगा कुछ भी जब तक

सत्य धारण नहीं किया जाएगा

आखिर सीखा क्या ? क्या है ऐसा तुम्हारे पास बतलाने को

बस अपना समय बिताना और दुनिया को सिर्फ उलझाने को

घरो में घुसकर -औरो के

ढूंढते तो अपना मन बहलाने को

या किसी सद्चरित्र को

अपनी आन से गिराने को

नहीं चाहिए मन्त्र ,श्लोक न कोई चौपाई सुननी

बस जो कुछ  कमाए और खुद की मौज मस्ती पर लुटाये

बाटते तो पुस्तके -----ईशारे गंदे

लाते है  मिठाई------कडवी बाते सुनकर न चेते

बोलते है  मीठा इतना---घिन्न आती है

समझते है लोग भी ,

की भी जाती  बहुत खिचाई

 पर बेशर्म है ये--कुछ कागजातों और काबिलियत के सहारे

लोग देते है इनके जैसे ही इनके साथ

बोलते नहीं --क्यूंकि ये  पैसा खर्च करते है

ये तो लगाये बैठे है घात

कब कोई बीमार पड़े गैर स्त्री

चाहे बहु ,बेटी की उम्र की हो

कब ये सहला सके उसके बदन को

सहयोग सेवा के नाम पर

बड़े बड़े लोगो में सुबह गुजरे

इतनी बड़ी संस्थाए के सरंक्षक -संस्थापक

इतने बड़े बैनर में चलने वाले

कितने खोखले है ये सब

इनके रहने से समाज का नुक्सान है

 बहुत ही ज्यादा ,लाभ नहीं लेश मात्र भी

क्यूंकि  ये खुद को जीवित रखना चाहते है

दूसरो की नैतिक मान्यताओ की लाशो पर

अपराधी कोई और कोई तो मांसाहारी होता है

ये तो आत्मा को खाने की तैय्यारी में है

ऐसा -ज्ञान   किस काम का

पाण्डित्य जैसे गाली है -

1 comment:

  1. १००% आप से सहमत हूँ ..इंदु जी
    मंदिर जाने के नाम से या किसी आश्रम में कथा सुनने के नाम से मुझे बहुत घबराहट होती है ...इस लिए घर में सब मुझे नास्तिक कहते हैं

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