Tuesday, 8 October 2013

छुटकारा चाहिए -

छुटकारा ---

छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 

मै भी करना चाहती हूँ 
अब पीड़ा ,दर्द से कुट्टी 
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 




शिकारी पीछे पड़े है 
सामाजिक पारिवारिक दायित्वों 
 के नाम पर मै तो जा रही लुट्टी   
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 


न तो किस्मत ख़राब थी न नीयत 
फिर जिंदगी रही बस बंद मुठ्ठी 
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 


सेविका बन गयी गाली खाते खाते 
अब तो दर्द की लहर दबी हुई है उठ्ठी 
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 


सब कुछ तो है  हाथ पैर आंख कान 
फिर क्यूँ क्यूँ मानू  अपनी तकदीर फ़ुट्टी 
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 


गली के कुत्तो भेड़ों के नाम पर --जो पनाह दे रखी है 
इस एहसान की और नही पीनी है घुट्टी 
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 
************************इन्दू 


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आपका स्वागत है , जो आपने अपना बहुमूल्य समय देकर मेरे लेखन को पढ़ा और सुझाव, प्रतिक्रिया एवं आशीर्वाद दिया । आपका ह्रदय से आभार एवं मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए साधुवाद। पुनः आ

असत्य के साथ जीना

असत्य के साथ जीना कष्टकारी ही होता है यदि ज्ञान न हो तो ,ज्ञान से जानकारी की दिशा तय की जा सकती है या जानकारी से ज्ञान हो ,कुछ भी संभव है। ज्ञान व जानकारी के सहयोग से ही नीतियाँ बन पाती और नेक नीयत से ही नीतियाँ सफल हो पाती है । भारत की संस्कृति मे जो बात है उसमे सके लिए सहज और शाश्वत आकर्षण है परंतु यही गुण सबको भयभीत करता है इसलिए इसको धर्म ,जाति के नाम पर तोड़ा जा रहा है क्यूकि तुलनात्मक हो या प्रतिस्पर्धात्मक दोनों कारणो से भारत के वसुधैव कुटुंबकम जो वैदिक सूत्र है उसका उत्तर नहीं है किसी के पास ,जियो और जीने दो ,सर्वे भवन्तु सुखिन:,प्राणियो से प्यार ,आश्रम ,गुरुकुल जैसी मान्यताए जिसे हिन्दुत्व कहते है वर्तमान मे और राजनैतिक दृष्टि से भा ज पा ,जबकि स्मृति ईरानी संसद मे हिन्दी बोलने का संकल्प भी नहीं ले पायी अब तक ?

कंही आपके आस पास भी कुछ ऐसे लोग तो नहीं जिन्हे आप जिंदगी की उलझनों मे खो रहे है या कुछ ऐसे नकारात्मक लोग तो नहीं जो उन हीरो का इस्तेमाल ही नहीं करने देते और सब छूट जाता है खोया सा जाता है ये ही बेचैनिया जीने नहीं देती ,घबराए नहीं बस नकारात्मक लोगो से बचने का पूरा प्रयास करे और सबसे पहले अपने आत्मविश्वास का हीरा तराशे फिर देखिये कीमती व्यक्तित्व आप तक जरूर पहुचेंगे आपको किसी के पीछे दौड़ने की जरूरत ही नहीं । 
प्यार करे अपने आप से ,अपने माँ- बाप से ,जिंदगी मे इतनी तकलीफ क्यूँ आए जो अपने भी सताये भारतीय होना चिंतनशील होना है क्यूंकि इस जमी पर सहज ज्ञान-व्यवस्था की सर्वाधिक संभावनाए रही है जो परम्पराओ के रूप मे आज भी विद्यमान है ये प्रेम की धरती है वसुधैव-कुटुंबकम इसी पर कहा सुना जाता है ये कोई छोटी बात नहीं है आओ इसे समझे प्यार का विकल्प नफरत से पैदा नहीं होता ।

कैसे ?

देश अस्त व्यस्त हो तो मै कैसे दुरुस्त रहू 

जब सब कुछ बेमानी है तो मै कैसे चुस्त रहू 

मेरी ऊर्जा का प्रवाह तो ईमान से चलता है 

अरे मुह मोड कर चल दू तो कैसे मस्त रहू -"

कमजोर न बने -

क्या आप ने कभी किसी से भी इतना प्रेम किया है कि वो सुख का कारण बन सका हो,अक्सर दर्द वही मिलता है जहा गहराई होती है जज़्बातों मे और जितनी लंबी उम्र होती है सम्बन्धो की कसक दे जाती है पर ये तो कमजोर होना है यदि कोई आपके भावो को समझ नहीं रहा तो उस पर समय नहीं देना चाहिए ,जितना ग्रहण करे उतनी ही अभिव्यक्ति करे मेल रखे लेकिन ऐसे मे अक्सर भावुक लोग पत्थर दिल वालों का शिकार बन जाते है तो उपाय है कि कभी भी अपनी भावुकता या प्रेम की पोल मत खोलिए जो खुद ऐसा होगा वो तो दूर ही नहीं जाएगा और जो आप जैसा होगा वो गैर भी ऐसे ही आएंगे जो आपकी तरह भावुक निश्चल होंगे ।

देह नहीं हूँ मात्र मै

मै स्वामी दयानंद की तरह घर नहीं छोड़ सकती थी ,गाँधी की तरह अफ्रीका नहीं जा सकती थी ,खुद की संवेदना और विरोध की भूमिका बनाने ,एनी बीसेंट की तरह परिवार से अलग नहीं हो सकी मदर टेरेसा की तरह वैवाहिक जीवन से परे नहीं रहने दिया और मै राजकुमारी पर ब्रह्मज्ञानी मदालसा की तरह मै बेबस थी मै अज्ञानी थी पर क्या फर्क पड़ता है जब ज्ञान ही जंजीरों को तोड़ने के लिए उनमे रहने की पीड़ा को अनुभव करने का एक अवसर ग्रहण करने को कहे जब दुसरे आपकी बात न समझे तो मजबूर होकर दूसरो की भाषा में खुद को तपाना पड़ता है एक अग्नि परीक्षा की तरह -पर वेश्या कहना नहीं अच्छा लगा था मुझे चाहे संसद की तुलना की हो या राजा को नसीहत दी हो चाहे ब्रह्मचर्य के प्रयोग किये हो गाँधी जी ने| हमें उस वर्ग की तलाश है जिसे नारी में देह नहीं मष्तिष्क दिखता हो और जो विचारक नारी की प्रतीक्षा कर रहा हो |


हमने देखी है -

हमने देखी है उन आँखों की गमी भी दिल से 

जिनके होठो पे प्यास है और पेट में न रोटी है 

जिस्म में सिर्फ साँसे है गवाह जिन्दा होने की 

मिले ही नहीं वो अपनी खोयी कभी मंजिल से 

हमने देखी है उन आँखों की गमी भी दिल से ----------


प्रेम से आकर जीना तो सीखा दो कोई उनको 

नफरतो से जिन्हें दुनिया पे हुकूमत ही करनी 

इन मासूमो को वो यूँ रूलाते है पत्थर बनकर 

खुद तैरने वालो को भी दूर करते है साहिल से 

हमने देखी है उन आँखों की गमी भी दिल से ---------------------इन्दू

Tuesday, 1 October 2013

बीज बंजर में

जिन दिलो में प्रेम छिपा होता है
अक्सर उन्ही की आँखों में दर्द दिखाई पड़ता है
जिनके जीवन में शामिल कोई
यहाँ पत्थर सा व्यक्ति ही - बात बात में अड़ता है
सहेज सके किसी की साँसों को ऐसा *पात्र नहीं मिलता
बचने को अपनी सजा से ही तो
दोष अपनी जुबान दिमाग से दूजो पर मडता है
कोई भी जमी उनके -पास नहीं
भावो का बीज बंजर में पहुच बस यूँ ही सड़ता है
[*पात्र - दो अर्थ है -योग्य ,बर्तन ]