मै स्वामी दयानंद की तरह घर नहीं छोड़ सकती थी ,गाँधी की तरह अफ्रीका नहीं जा सकती थी ,खुद की संवेदना और विरोध की भूमिका बनाने ,एनी बीसेंट की तरह परिवार से अलग नहीं हो सकी मदर टेरेसा की तरह वैवाहिक जीवन से परे नहीं रहने दिया और मै राजकुमारी पर ब्रह्मज्ञानी मदालसा की तरह मै बेबस थी मै अज्ञानी थी पर क्या फर्क पड़ता है जब ज्ञान ही जंजीरों को तोड़ने के लिए उनमे रहने की पीड़ा को अनुभव करने का एक अवसर ग्रहण करने को कहे जब दुसरे आपकी बात न समझे तो मजबूर होकर दूसरो की भाषा में खुद को तपाना पड़ता है एक अग्नि परीक्षा की तरह -पर वेश्या कहना नहीं अच्छा लगा था मुझे चाहे संसद की तुलना की हो या राजा को नसीहत दी हो चाहे ब्रह्मचर्य के प्रयोग किये हो गाँधी जी ने| हमें उस वर्ग की तलाश है जिसे नारी में देह नहीं मष्तिष्क दिखता हो और जो विचारक नारी की प्रतीक्षा कर रहा हो |
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