Tuesday, 23 July 2013

उतना ही

उतना ही बोलूंगी

उतना ही लिख सकुंगी 

उतनी ही पैरवी करुँगी 

जो कम से कम और पवित्र हो 

क्यूंकि आहुति --तसले में देने से हवन का उद्देश्य पूरा नहीं होता 

और समाज निर्माण -यज्ञ में ऐसा होना चाहिए 

घरो के पर्यावरण को इसी लिए शुद्ध नहीं कर सके 

 क्यूंकि  सत्य नारायण की कथा

 असत्य धारण करने वालो के हाथो द्वारा संपन्न होती है




इम्तहा है


वो वक्त गुजर गया तुम्हे समझने का
अब तो हमारी समझ का इम्तहा है
किसने क्या कहा था किसने क्या सुना था
समझे जब तक, ये जिंदगी गुजर गयी
लौट कर आता नहीं वो पल क्या करे
सोचते है आने वाले  राहगीरों की मशाल बन जाए
 एक पेड़ बन छाया दे,या मील का पत्थर बन सफ़र आसान करे  

Friday, 19 July 2013

सिद्द करने की जिद

यूँ खुद को सिद्द करने की जिद की उम्र बढती जा रही है

इस उम्र के शरीरो की जिद की कीमत चढ़ती जा रही है

पर क्यूँ ये जिद

अभी तक कोई सिद्द नहीं कर पाया

संतुष्टि के लिए

या पीड़ा उन्मूलन का निश्छल प्रयास मात्र

अपने अहम् की देख रेख परवाह के लिए


----------------------क्रमश :

Monday, 15 July 2013

पीड़ा तो पीड़ा है

न वो धर्म की है न वो जाति की है
पीड़ा तो बस उस इंसान की है जो उसको जीता है
पर हारा  सा महसूस करके

आज अपना सा दर्द देखा किसी की आँखों में
मन किया इसे ढक दे और आगे चले

शायद कर्म की पवन चले तो उड़ जाए
या इस पीड़ा के पाठक मिल जाए 

Friday, 12 July 2013

परवाह

एक चीज होती है परवाह

उसको कभी महसूस किया

वह जिसे होती है

जरूरी नहीं कि प्यार में हो

प्यार में  तो प्रवाह भी होता है


संवेदनाओं का ,समीपता का

कष्ट का चिंतन  ,लक्ष्य का ,अन्वेक्षण

ऊर्जा की गणना का


वो परवाह ही कर लेते इतनी सी

कि -------जीवन को महत्त्व मिल जाता

न करते त्याग न सही

 शब्दों का विश्वास ------हो जाता

किसी के होते ---किसी के लिए तो रोते

पर ----इस रेगिस्तान में  नहीं उगेगी फसल

कभी भी ---------------------------भावनाओं की


ये यूँ ही झूठ ,सच में डोलता सा रिश्ता बोझिल


हर बात करता है चोटिल

अपने से भी प्रेम न हो तो परवाह करो

अपने साथ जो जो कर सकते है

दूजे संग आसान होता है करना

पर ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता


आस

आस लगाये बैठे है

शायद जान लोगे

कभी वो दिन आएगा

मुझे पहचान लोगे

अपने में कुछ कहते ही नहीं

मेरी भी  कभी सुनते ही नहीं

शोर बहुत होता है अक्सर

जो कहते हो वो मेरा नहीं

जो सुनते हो वो तेरा नहीं

दूसरो की बातो में

अपनी मुलाकातों में

करीब नहीं दूर जा रहे है

हम भी अब घबरा रहे है

भीड़ के अकेलेपन में कैसे जिएंगे

कुछ भी अपना किया नहीं जीवन भर

वो जो  सूकून दे जाता

जीने का जूनून दे जाता

ऐसा कुछ होता अपना सा 

Thursday, 11 July 2013

तेरा भोलापन

तेरा भोला पन सदके जाऊ

मुझे मुझसे भी जुदा कर दिया है

खुद में तुम क्या थे

ना जाना, न जनाया ,न जानने ही दिया

अपने दिल को हमें मानने भी न दिया

आज मेरी खूबसूरती ही मेरी न रही

तेरे भोलेपन की प्रतीक्षा में

जो है ही नहीं शायद

पर मुझे तो उसी के लिए बनाया है कायनात ने

अब क्या करे --------अपने अन्दर  भोलेपन

तलाशना होगा -वो जो सब कुछ भूल जाता हो

बार बार --------------------------हजार बार ---------चाहे जिंदगी रुकी हो या चले

उसे कुछ भी न रुलाता हो ---ऐसा ही -----जो कला में बदल जाए शायद --

सृजनात्मक --हो किसी दिशा में --

पर तुम और तुहारा जीवन चाहे जैसा जी लो


हमें बख्श दो ----नहीं जीना गर ---तो क्यूँ हमें घसीटते हो

अपने लिए

सृष्टि --के अस्तित्व के नाम पर --------------------

वाह रे भोलापन तेरा ----------------

संभाला न गया

बहुत नाजुक था  प्यार मेरा 

क्यूँ तुझसे संभाला न गया 

तुझे तो देना ही ना  था 

या पास तेरे मेरा प्याला न गया 

कुछ तो कहता ऐसा जो आस पास होता 

बात दूरी की नहीं दिशा की है 

हम एक दूजे से मुहँ फेर चल रहे है 

कौन सही है कौन गलत के दायरे से बाहर 

कुछ और था ,

ठेस लगती मेरे लिए भी तुझे कभी 

तो कोई अपना हो जाता 

जो देखा भी नहीं था वही सपना हो जाता 

इस तरह संवेदनाओ को छोड़ते देख कर 

कैसे खुश हो जाऊ देह पर 

होता नहीं मुझसे -

सुबह तक खीच कर डोर आती नहीं 

जिसके सहारे दिन की किरणों में 

कुछ देख लू ---इसलिए जाओ अपनी मंजिल की ओर

तुम्हारा मन लगाने वाले बहुत मिलेंगे 

मुझे भी तन धन के साथ मन की दुनिया चाहिए 

क्यूंकि वही मेरा स्टार्टर है --वर्ना रुका है सफ़र 

इंजन ,गाडी ,पटरी चाहे हो पर 

संचालक न हो --सब व्यर्थ हो जाता है 

मान बैठी थी वही ये भूल थी नहीं 

ऐसा ही दिखया बताया गया था 

इस उत्पाद की सावधानिया नहीं लिखी थी 

और मुझे ख़रीदा ही नहीं गया था 

मै तो दान की वस्तु थी 

जैसे गाय ---पर उसे भी तो चारा मिलता है 

मेरे चारे की तो किसी ने पूछी ही न थी 

जो मर्जी आया डाल दिया सामने 

इतने बरस बीते पर आदत नहीं डली

कुछ भी खा लेने की ----जिन्दा रहने के लिए 

इसलिए प्राणों पर आ बनी है -----------------



इक दिन तो -

मैं ये सोच कर हर गम का कपडा पहनती रही कि फट जाएंगा

कभी आंसुओ को न रोका सोचा चलो सैलाब कुछ घट जाएंगा

मेरे हिस्से में मेरे किस्से में जो समय लिखा है वो कट जाएगा

ये बादल बरस कर कभी तो जीवन के आसमा से हट जाएगा

दिल को जो भी गलत लगता है वो इक दिन तो छट जाएगा ----------

Wednesday, 10 July 2013

रुक जाओ

किसे धिक्कारे और कब तक 

सरकार को -प्रशासन को ?


कोई कहता है माँ बाप संभाले उनकी जिम्मेदारी है 


बिलकुल सही यदि 


जन्म देने का गुनाह 


करोगे तुम अपने बच्चो को 


तो जिन्दा रखने के लिए शस्त्र अस्त्र भी उठाने ही होंगे 


पल पल प्रार्थना करना चाहे पैनी करना निगाह 


जब तक इतना इरादा न कर लो 


जन्म न देना -किसी धर्म के नाम पर 


किसी दाता के नाम पर 


खुद तो काट लेना तानो से भरी जिंदगी 


पर इन नन्हो को खौफ न देना 


रुक जाओ ,रुक जाओ 


माँ पिता बनने  से पहले सोच लो --उनका संभावित भविष्य 


अब बहुत देर से जागना भी


क्या होगा ,जब अंधेरा होने को है 

न्याय की बात वो समझे

 जिनके कंधो पर दायित्व ढोने को है 

चिड़िया चुग गयी खेत देखते रहो दूर से 


तेरे पास तो समय बस सोने को है



Monday, 8 July 2013

क्या समझाए ?

क्या समझाए ऐसे लोगो को

जो संवेदनाओं का ठेका लिए फिरते है

सम्मानित हुए मंचो पर -अपनी विधा के लिए

घरो में पहुच जबरदस्ती का भाव उडेलना

उबकाई आती है ऐसे साहित्यकारों से

घिन आती है ऐसे समाज सेवको से

बहुत अच्छे लगते है वो जो अपनी

मर्यादाये नहीं लांघते

दिल करता है

उन्हें ढूंढ़ ढूंढ़ कर लाया जाये

और शांति से रहने का ही

नया सम्मान प्रारंभ किया जाये

वो जो हस्तक्षेप नहीं करते

किसी दुसरे की दुनिया में

बिना इज़ाज़त

दूसरो के समय और गोपनीयता

का बलात्कार करते फिरते है

इन्हें रोको ---इन्हें कोई तो टोको

Saturday, 6 July 2013

देह के दरिन्दे

उसकी अदा है उसका भोला पन


सबको हँसाती ,रूलाती सी


कहाँ मिलता है वो नग्नता में


कहाँ सजने संवरने से आता है


वो तो अंतर में छुपा वो सौन्दर्य


आँखों से छलकता सा


वो मूर्ख नहीं है वो भोली है


उसे कभी इतना दुखी न करना


कि उसका साथ छूट जाए


उसकी ये सादगी ,गाली बन जाए


कैसे बचे ये बच्चिया


इन देह के दरिंदो से ----


कैसे जीते इन संवेदनहीनो  को ----

Thursday, 4 July 2013

सेना का लोकतंत्र

सेना करेगी मिश्र  में लोकतंत्र की रक्षा 
क्या  लगता है आप को संभव है ऐसा 
एक वर्ष के शिशु लोकतंत्र का हाल देखो 
किया आक्रोशित जनता ने बवाल  देखो 
दूध के जले है --छाछ तो जरा छान ले 
क्यूँ अब सब ठीक  होगा कैसे  मान ले 
 सैन्य बल की   छत्र छाया में लोकतंत्र 
 नया सा अनुभव अनोखी सी ये बात 
 लोकतंत्र से मानव को जीवन मिलेगा 
अधिकारों को सरकारी आलम्बन मिलेगा  
ये स्वप्न देखना ही होगा 
बेईमानी जब तक होगी 
तब तक जनता यूँ ही 
आक्रोशित होती रहे 
यही इच्छा है
 प्रत्येक लोकतंत्र -की जीवन शैली के समर्थक की 
अपना आकाश देखने की चाहत 
अपनी जमीं के लिए अपनी बात 
जितनी क्षमता है उसे जी सके 
ऊर्जा को घुट के घूट घूट न पी सके