Friday, 12 July 2013

परवाह

एक चीज होती है परवाह

उसको कभी महसूस किया

वह जिसे होती है

जरूरी नहीं कि प्यार में हो

प्यार में  तो प्रवाह भी होता है


संवेदनाओं का ,समीपता का

कष्ट का चिंतन  ,लक्ष्य का ,अन्वेक्षण

ऊर्जा की गणना का


वो परवाह ही कर लेते इतनी सी

कि -------जीवन को महत्त्व मिल जाता

न करते त्याग न सही

 शब्दों का विश्वास ------हो जाता

किसी के होते ---किसी के लिए तो रोते

पर ----इस रेगिस्तान में  नहीं उगेगी फसल

कभी भी ---------------------------भावनाओं की


ये यूँ ही झूठ ,सच में डोलता सा रिश्ता बोझिल


हर बात करता है चोटिल

अपने से भी प्रेम न हो तो परवाह करो

अपने साथ जो जो कर सकते है

दूजे संग आसान होता है करना

पर ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता


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