Thursday, 11 July 2013

संभाला न गया

बहुत नाजुक था  प्यार मेरा 

क्यूँ तुझसे संभाला न गया 

तुझे तो देना ही ना  था 

या पास तेरे मेरा प्याला न गया 

कुछ तो कहता ऐसा जो आस पास होता 

बात दूरी की नहीं दिशा की है 

हम एक दूजे से मुहँ फेर चल रहे है 

कौन सही है कौन गलत के दायरे से बाहर 

कुछ और था ,

ठेस लगती मेरे लिए भी तुझे कभी 

तो कोई अपना हो जाता 

जो देखा भी नहीं था वही सपना हो जाता 

इस तरह संवेदनाओ को छोड़ते देख कर 

कैसे खुश हो जाऊ देह पर 

होता नहीं मुझसे -

सुबह तक खीच कर डोर आती नहीं 

जिसके सहारे दिन की किरणों में 

कुछ देख लू ---इसलिए जाओ अपनी मंजिल की ओर

तुम्हारा मन लगाने वाले बहुत मिलेंगे 

मुझे भी तन धन के साथ मन की दुनिया चाहिए 

क्यूंकि वही मेरा स्टार्टर है --वर्ना रुका है सफ़र 

इंजन ,गाडी ,पटरी चाहे हो पर 

संचालक न हो --सब व्यर्थ हो जाता है 

मान बैठी थी वही ये भूल थी नहीं 

ऐसा ही दिखया बताया गया था 

इस उत्पाद की सावधानिया नहीं लिखी थी 

और मुझे ख़रीदा ही नहीं गया था 

मै तो दान की वस्तु थी 

जैसे गाय ---पर उसे भी तो चारा मिलता है 

मेरे चारे की तो किसी ने पूछी ही न थी 

जो मर्जी आया डाल दिया सामने 

इतने बरस बीते पर आदत नहीं डली

कुछ भी खा लेने की ----जिन्दा रहने के लिए 

इसलिए प्राणों पर आ बनी है -----------------



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