न वो धर्म की है न वो जाति की है
पीड़ा तो बस उस इंसान की है जो उसको जीता है
पर हारा सा महसूस करके
आज अपना सा दर्द देखा किसी की आँखों में
मन किया इसे ढक दे और आगे चले
शायद कर्म की पवन चले तो उड़ जाए
या इस पीड़ा के पाठक मिल जाए
पीड़ा तो बस उस इंसान की है जो उसको जीता है
पर हारा सा महसूस करके
आज अपना सा दर्द देखा किसी की आँखों में
मन किया इसे ढक दे और आगे चले
शायद कर्म की पवन चले तो उड़ जाए
या इस पीड़ा के पाठक मिल जाए
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