Friday, 12 July 2013

आस

आस लगाये बैठे है

शायद जान लोगे

कभी वो दिन आएगा

मुझे पहचान लोगे

अपने में कुछ कहते ही नहीं

मेरी भी  कभी सुनते ही नहीं

शोर बहुत होता है अक्सर

जो कहते हो वो मेरा नहीं

जो सुनते हो वो तेरा नहीं

दूसरो की बातो में

अपनी मुलाकातों में

करीब नहीं दूर जा रहे है

हम भी अब घबरा रहे है

भीड़ के अकेलेपन में कैसे जिएंगे

कुछ भी अपना किया नहीं जीवन भर

वो जो  सूकून दे जाता

जीने का जूनून दे जाता

ऐसा कुछ होता अपना सा 

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