Tuesday, 8 October 2013

छुटकारा चाहिए -

छुटकारा ---

छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 

मै भी करना चाहती हूँ 
अब पीड़ा ,दर्द से कुट्टी 
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 




शिकारी पीछे पड़े है 
सामाजिक पारिवारिक दायित्वों 
 के नाम पर मै तो जा रही लुट्टी   
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 


न तो किस्मत ख़राब थी न नीयत 
फिर जिंदगी रही बस बंद मुठ्ठी 
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 


सेविका बन गयी गाली खाते खाते 
अब तो दर्द की लहर दबी हुई है उठ्ठी 
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 


सब कुछ तो है  हाथ पैर आंख कान 
फिर क्यूँ क्यूँ मानू  अपनी तकदीर फ़ुट्टी 
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 


गली के कुत्तो भेड़ों के नाम पर --जो पनाह दे रखी है 
इस एहसान की और नही पीनी है घुट्टी 
छुटकारा चाहिए छद्म से
छटपटाहट से छुट्टी 
************************इन्दू 


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आपका स्वागत है , जो आपने अपना बहुमूल्य समय देकर मेरे लेखन को पढ़ा और सुझाव, प्रतिक्रिया एवं आशीर्वाद दिया । आपका ह्रदय से आभार एवं मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए साधुवाद। पुनः आ

असत्य के साथ जीना

असत्य के साथ जीना कष्टकारी ही होता है यदि ज्ञान न हो तो ,ज्ञान से जानकारी की दिशा तय की जा सकती है या जानकारी से ज्ञान हो ,कुछ भी संभव है। ज्ञान व जानकारी के सहयोग से ही नीतियाँ बन पाती और नेक नीयत से ही नीतियाँ सफल हो पाती है । भारत की संस्कृति मे जो बात है उसमे सके लिए सहज और शाश्वत आकर्षण है परंतु यही गुण सबको भयभीत करता है इसलिए इसको धर्म ,जाति के नाम पर तोड़ा जा रहा है क्यूकि तुलनात्मक हो या प्रतिस्पर्धात्मक दोनों कारणो से भारत के वसुधैव कुटुंबकम जो वैदिक सूत्र है उसका उत्तर नहीं है किसी के पास ,जियो और जीने दो ,सर्वे भवन्तु सुखिन:,प्राणियो से प्यार ,आश्रम ,गुरुकुल जैसी मान्यताए जिसे हिन्दुत्व कहते है वर्तमान मे और राजनैतिक दृष्टि से भा ज पा ,जबकि स्मृति ईरानी संसद मे हिन्दी बोलने का संकल्प भी नहीं ले पायी अब तक ?

कंही आपके आस पास भी कुछ ऐसे लोग तो नहीं जिन्हे आप जिंदगी की उलझनों मे खो रहे है या कुछ ऐसे नकारात्मक लोग तो नहीं जो उन हीरो का इस्तेमाल ही नहीं करने देते और सब छूट जाता है खोया सा जाता है ये ही बेचैनिया जीने नहीं देती ,घबराए नहीं बस नकारात्मक लोगो से बचने का पूरा प्रयास करे और सबसे पहले अपने आत्मविश्वास का हीरा तराशे फिर देखिये कीमती व्यक्तित्व आप तक जरूर पहुचेंगे आपको किसी के पीछे दौड़ने की जरूरत ही नहीं । 
प्यार करे अपने आप से ,अपने माँ- बाप से ,जिंदगी मे इतनी तकलीफ क्यूँ आए जो अपने भी सताये भारतीय होना चिंतनशील होना है क्यूंकि इस जमी पर सहज ज्ञान-व्यवस्था की सर्वाधिक संभावनाए रही है जो परम्पराओ के रूप मे आज भी विद्यमान है ये प्रेम की धरती है वसुधैव-कुटुंबकम इसी पर कहा सुना जाता है ये कोई छोटी बात नहीं है आओ इसे समझे प्यार का विकल्प नफरत से पैदा नहीं होता ।

कैसे ?

देश अस्त व्यस्त हो तो मै कैसे दुरुस्त रहू 

जब सब कुछ बेमानी है तो मै कैसे चुस्त रहू 

मेरी ऊर्जा का प्रवाह तो ईमान से चलता है 

अरे मुह मोड कर चल दू तो कैसे मस्त रहू -"

कमजोर न बने -

क्या आप ने कभी किसी से भी इतना प्रेम किया है कि वो सुख का कारण बन सका हो,अक्सर दर्द वही मिलता है जहा गहराई होती है जज़्बातों मे और जितनी लंबी उम्र होती है सम्बन्धो की कसक दे जाती है पर ये तो कमजोर होना है यदि कोई आपके भावो को समझ नहीं रहा तो उस पर समय नहीं देना चाहिए ,जितना ग्रहण करे उतनी ही अभिव्यक्ति करे मेल रखे लेकिन ऐसे मे अक्सर भावुक लोग पत्थर दिल वालों का शिकार बन जाते है तो उपाय है कि कभी भी अपनी भावुकता या प्रेम की पोल मत खोलिए जो खुद ऐसा होगा वो तो दूर ही नहीं जाएगा और जो आप जैसा होगा वो गैर भी ऐसे ही आएंगे जो आपकी तरह भावुक निश्चल होंगे ।

देह नहीं हूँ मात्र मै

मै स्वामी दयानंद की तरह घर नहीं छोड़ सकती थी ,गाँधी की तरह अफ्रीका नहीं जा सकती थी ,खुद की संवेदना और विरोध की भूमिका बनाने ,एनी बीसेंट की तरह परिवार से अलग नहीं हो सकी मदर टेरेसा की तरह वैवाहिक जीवन से परे नहीं रहने दिया और मै राजकुमारी पर ब्रह्मज्ञानी मदालसा की तरह मै बेबस थी मै अज्ञानी थी पर क्या फर्क पड़ता है जब ज्ञान ही जंजीरों को तोड़ने के लिए उनमे रहने की पीड़ा को अनुभव करने का एक अवसर ग्रहण करने को कहे जब दुसरे आपकी बात न समझे तो मजबूर होकर दूसरो की भाषा में खुद को तपाना पड़ता है एक अग्नि परीक्षा की तरह -पर वेश्या कहना नहीं अच्छा लगा था मुझे चाहे संसद की तुलना की हो या राजा को नसीहत दी हो चाहे ब्रह्मचर्य के प्रयोग किये हो गाँधी जी ने| हमें उस वर्ग की तलाश है जिसे नारी में देह नहीं मष्तिष्क दिखता हो और जो विचारक नारी की प्रतीक्षा कर रहा हो |


हमने देखी है -

हमने देखी है उन आँखों की गमी भी दिल से 

जिनके होठो पे प्यास है और पेट में न रोटी है 

जिस्म में सिर्फ साँसे है गवाह जिन्दा होने की 

मिले ही नहीं वो अपनी खोयी कभी मंजिल से 

हमने देखी है उन आँखों की गमी भी दिल से ----------


प्रेम से आकर जीना तो सीखा दो कोई उनको 

नफरतो से जिन्हें दुनिया पे हुकूमत ही करनी 

इन मासूमो को वो यूँ रूलाते है पत्थर बनकर 

खुद तैरने वालो को भी दूर करते है साहिल से 

हमने देखी है उन आँखों की गमी भी दिल से ---------------------इन्दू

Tuesday, 1 October 2013

बीज बंजर में

जिन दिलो में प्रेम छिपा होता है
अक्सर उन्ही की आँखों में दर्द दिखाई पड़ता है
जिनके जीवन में शामिल कोई
यहाँ पत्थर सा व्यक्ति ही - बात बात में अड़ता है
सहेज सके किसी की साँसों को ऐसा *पात्र नहीं मिलता
बचने को अपनी सजा से ही तो
दोष अपनी जुबान दिमाग से दूजो पर मडता है
कोई भी जमी उनके -पास नहीं
भावो का बीज बंजर में पहुच बस यूँ ही सड़ता है
[*पात्र - दो अर्थ है -योग्य ,बर्तन ]

Sunday, 29 September 2013

कुछ लाइने मेरी भी

ऐसी कैद में है जहाँ जंजीरे तोड़ नहीं सकते चाह  कर भी
तेरी खुदाई से जी इतना भर गया याद तुम अब आते नहीं

बहुत जज्बातों को रोकना भी कहाँ तक होता है
यहाँ थाम के दिल को जब कोई अकेले में रोता है

कोई पास आके दिल के ,जब अचानक अजनबी सा बनता है
किस तरह यकीं दिलाये खुद को हमें तो बड़ी तकलीफ होती है

कर्मयोगियो को ज्योतिष के विज्ञानं को जानने  की फुर्सत ही कहाँ मिलती है
विचारो की खेती हो जाए तो खरपतवार की  उस जमीं पर नहीं कुछ चलती है --

समझ में जो आ जाए ये जिंदगी की कहानी सचमुच बहुत सुहानी है
समझ में आ जाने और ना आ जाने के बीच ही तो ये इसकी रवानी है -----

जिन दिलो में प्रेम छिपा होता है
अक्सर उन्ही की आँखों में दर्द दिखाई पड़ता है

जिनके जीवन में शामिल कोई
यहाँ पत्थर सा व्यक्ति ही - बात बात में अड़ता है

सहेज सके किसी की साँसों को ऐसा *पात्र नहीं मिलता
बचने को अपनी सजा से ही तो
दोष अपनी जुबान दिमाग से दूजो पर मडता है

कोई भी जमी उनके -पास नहीं
भावो का बीज बंजर में पहुच बस यूँ ही सड़ता है
[*पात्र - दो अर्थ है -योग्य ,बर्तन ]

Sunday, 25 August 2013

गुनाह

खुद को ना समझने का मुझसे गुनाह मुझसे हो गया है 
सजा बढती जा रही है दिनों ,घंटो के साथ --------

हर बात में समझौते कर  ठीक नहीं ये मुझसे हो गया है 
समझ घटती जा रही है -व्यंग्य ,तानो के साथ ------

क्या चाहत है मेरी नहीं जाना और साथी छोड़ सो गया है 
क्षमता सिमटती जा रही है - रोगों ,भोगो के साथ ------

Saturday, 24 August 2013

छुटकारा --


छुटकारा चाहिए छद्म से

छटपटाहट से छुट्टी


मै भी करना चाहती हूँ

अब पीड़ा ,दर्द से कुट्टी

छुटकारा चाहिए छद्म से

छटपटाहट से छुट्टी



शिकारी पीछे पड़े है

सामाजिक पारिवारिक दायित्वों

 के नाम पर मै तो जा रही लुट्टी

छुटकारा चाहिए छद्म से

छटपटाहट से छुट्टी



न तो किस्मत ख़राब थी न नीयत

फिर जिंदगी रही बस बंद मुठ्ठी

छुटकारा चाहिए छद्म से

छटपटाहट से छुट्टी



सेविका बन गयी गाली खाते खाते

अब तो दर्द की लहर दबी हुई है उठ्ठी

छुटकारा चाहिए छद्म से

छटपटाहट से छुट्टी



सब कुछ तो है  हाथ पैर आंख कान

फिर क्यूँ क्यूँ मानू  अपनी तकदीर फ़ुट्टी

छुटकारा चाहिए छद्म से

छटपटाहट से छुट्टी



गली के कुत्तो भेडियो  के नाम पर --जो पनाह दे रखी है

इस एहसान की और नही पीनी है घुट्टी

छुटकारा चाहिए छद्म से

छटपटाहट से छुट्टी


मेरे स्वभिमान की भाषा से अनजान हो

और मेरी अदाओं की काट कर रख दी कुट्टी [चारा ]

छुटकारा चाहिए छद्म से

छटपटाहट से छुट्टी


मै उम्र गुजरती रही कभी मन जीत लूंगी

पर दर्द की ओढनी की रोज गड़ती है खुट्टी

छुटकारा चाहिए छद्म से

छटपटाहट से छुट्टी



************************इन्दू



Wednesday, 7 August 2013

पाण्डित्य किस काम का ,--

पाण्डित्य किस काम का ,

सिर्फ दुनिया को मूर्ख बनाने को

ये आन्दोलन सिर्फ नाम का

दुखियो को स्वप्न दिखाने को

नहीं होगा कुछ भी जब तक

सत्य धारण नहीं किया जाएगा

आखिर सीखा क्या ? क्या है ऐसा तुम्हारे पास बतलाने को

बस अपना समय बिताना और दुनिया को सिर्फ उलझाने को

घरो में घुसकर -औरो के

ढूंढते तो अपना मन बहलाने को

या किसी सद्चरित्र को

अपनी आन से गिराने को

नहीं चाहिए मन्त्र ,श्लोक न कोई चौपाई सुननी

बस जो कुछ  कमाए और खुद की मौज मस्ती पर लुटाये

बाटते तो पुस्तके -----ईशारे गंदे

लाते है  मिठाई------कडवी बाते सुनकर न चेते

बोलते है  मीठा इतना---घिन्न आती है

समझते है लोग भी ,

की भी जाती  बहुत खिचाई

 पर बेशर्म है ये--कुछ कागजातों और काबिलियत के सहारे

लोग देते है इनके जैसे ही इनके साथ

बोलते नहीं --क्यूंकि ये  पैसा खर्च करते है

ये तो लगाये बैठे है घात

कब कोई बीमार पड़े गैर स्त्री

चाहे बहु ,बेटी की उम्र की हो

कब ये सहला सके उसके बदन को

सहयोग सेवा के नाम पर

बड़े बड़े लोगो में सुबह गुजरे

इतनी बड़ी संस्थाए के सरंक्षक -संस्थापक

इतने बड़े बैनर में चलने वाले

कितने खोखले है ये सब

इनके रहने से समाज का नुक्सान है

 बहुत ही ज्यादा ,लाभ नहीं लेश मात्र भी

क्यूंकि  ये खुद को जीवित रखना चाहते है

दूसरो की नैतिक मान्यताओ की लाशो पर

अपराधी कोई और कोई तो मांसाहारी होता है

ये तो आत्मा को खाने की तैय्यारी में है

ऐसा -ज्ञान   किस काम का

पाण्डित्य जैसे गाली है -

Saturday, 3 August 2013

युद्ध तो करना होगा -दुर्गा

बचोगे कब तक
युद्ध तो करना ही होगा
चाहे आज करो या कल


तुम करो या कोई और
जो लडेगा वो ही हक़दार होगा 
ललकार नहीं मात्र ये
अवसर है चुनने का 
सही गलत में से



अपनी कायरता या साहस दिखाने का
चाहे तुमने अपनी ड्यूटी की हो मजबूरी में
किसी भावी सजा से बचने के लिए
पर अब वक्त तुम्हारी अग्नि परीक्षा का है


वर्ना तुम्हारा  स्वाभिमान
ख़रीदा जाएगा --हँसते-हँसाते
छुड़ा दी जाएगी ये दुनिया जो आज साथ है
कल आने वाली दुर्गाओ की हिम्मत तोड़ देगी
अपने लिए नहीं आने वाली पीढ़ी का सोचो


संताने इस माँ की प्रतीक्षा में है --
परिवार बहुत बड़ा होने जा रहा है ,
कैसा घबराना आने वाला वक्त आपका है
और आप जैसे युवाओं का है


संभालो देश को जिले मंडल से आगे आकर
---युद्ध तो करना होगा
---अपने आप से
---और इस पाप से ---


जो हो न जाए हाथो से ---
निबट भी लो इन बातो से 
योद्धा बना दो देश को आगे आओ


युद्ध तो करना होगा -दुर्गा
चाहे अब करो या पूरी उम्र करना --------------




Tuesday, 23 July 2013

उतना ही

उतना ही बोलूंगी

उतना ही लिख सकुंगी 

उतनी ही पैरवी करुँगी 

जो कम से कम और पवित्र हो 

क्यूंकि आहुति --तसले में देने से हवन का उद्देश्य पूरा नहीं होता 

और समाज निर्माण -यज्ञ में ऐसा होना चाहिए 

घरो के पर्यावरण को इसी लिए शुद्ध नहीं कर सके 

 क्यूंकि  सत्य नारायण की कथा

 असत्य धारण करने वालो के हाथो द्वारा संपन्न होती है




इम्तहा है


वो वक्त गुजर गया तुम्हे समझने का
अब तो हमारी समझ का इम्तहा है
किसने क्या कहा था किसने क्या सुना था
समझे जब तक, ये जिंदगी गुजर गयी
लौट कर आता नहीं वो पल क्या करे
सोचते है आने वाले  राहगीरों की मशाल बन जाए
 एक पेड़ बन छाया दे,या मील का पत्थर बन सफ़र आसान करे  

Friday, 19 July 2013

सिद्द करने की जिद

यूँ खुद को सिद्द करने की जिद की उम्र बढती जा रही है

इस उम्र के शरीरो की जिद की कीमत चढ़ती जा रही है

पर क्यूँ ये जिद

अभी तक कोई सिद्द नहीं कर पाया

संतुष्टि के लिए

या पीड़ा उन्मूलन का निश्छल प्रयास मात्र

अपने अहम् की देख रेख परवाह के लिए


----------------------क्रमश :

Monday, 15 July 2013

पीड़ा तो पीड़ा है

न वो धर्म की है न वो जाति की है
पीड़ा तो बस उस इंसान की है जो उसको जीता है
पर हारा  सा महसूस करके

आज अपना सा दर्द देखा किसी की आँखों में
मन किया इसे ढक दे और आगे चले

शायद कर्म की पवन चले तो उड़ जाए
या इस पीड़ा के पाठक मिल जाए 

Friday, 12 July 2013

परवाह

एक चीज होती है परवाह

उसको कभी महसूस किया

वह जिसे होती है

जरूरी नहीं कि प्यार में हो

प्यार में  तो प्रवाह भी होता है


संवेदनाओं का ,समीपता का

कष्ट का चिंतन  ,लक्ष्य का ,अन्वेक्षण

ऊर्जा की गणना का


वो परवाह ही कर लेते इतनी सी

कि -------जीवन को महत्त्व मिल जाता

न करते त्याग न सही

 शब्दों का विश्वास ------हो जाता

किसी के होते ---किसी के लिए तो रोते

पर ----इस रेगिस्तान में  नहीं उगेगी फसल

कभी भी ---------------------------भावनाओं की


ये यूँ ही झूठ ,सच में डोलता सा रिश्ता बोझिल


हर बात करता है चोटिल

अपने से भी प्रेम न हो तो परवाह करो

अपने साथ जो जो कर सकते है

दूजे संग आसान होता है करना

पर ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता


आस

आस लगाये बैठे है

शायद जान लोगे

कभी वो दिन आएगा

मुझे पहचान लोगे

अपने में कुछ कहते ही नहीं

मेरी भी  कभी सुनते ही नहीं

शोर बहुत होता है अक्सर

जो कहते हो वो मेरा नहीं

जो सुनते हो वो तेरा नहीं

दूसरो की बातो में

अपनी मुलाकातों में

करीब नहीं दूर जा रहे है

हम भी अब घबरा रहे है

भीड़ के अकेलेपन में कैसे जिएंगे

कुछ भी अपना किया नहीं जीवन भर

वो जो  सूकून दे जाता

जीने का जूनून दे जाता

ऐसा कुछ होता अपना सा 

Thursday, 11 July 2013

तेरा भोलापन

तेरा भोला पन सदके जाऊ

मुझे मुझसे भी जुदा कर दिया है

खुद में तुम क्या थे

ना जाना, न जनाया ,न जानने ही दिया

अपने दिल को हमें मानने भी न दिया

आज मेरी खूबसूरती ही मेरी न रही

तेरे भोलेपन की प्रतीक्षा में

जो है ही नहीं शायद

पर मुझे तो उसी के लिए बनाया है कायनात ने

अब क्या करे --------अपने अन्दर  भोलेपन

तलाशना होगा -वो जो सब कुछ भूल जाता हो

बार बार --------------------------हजार बार ---------चाहे जिंदगी रुकी हो या चले

उसे कुछ भी न रुलाता हो ---ऐसा ही -----जो कला में बदल जाए शायद --

सृजनात्मक --हो किसी दिशा में --

पर तुम और तुहारा जीवन चाहे जैसा जी लो


हमें बख्श दो ----नहीं जीना गर ---तो क्यूँ हमें घसीटते हो

अपने लिए

सृष्टि --के अस्तित्व के नाम पर --------------------

वाह रे भोलापन तेरा ----------------

संभाला न गया

बहुत नाजुक था  प्यार मेरा 

क्यूँ तुझसे संभाला न गया 

तुझे तो देना ही ना  था 

या पास तेरे मेरा प्याला न गया 

कुछ तो कहता ऐसा जो आस पास होता 

बात दूरी की नहीं दिशा की है 

हम एक दूजे से मुहँ फेर चल रहे है 

कौन सही है कौन गलत के दायरे से बाहर 

कुछ और था ,

ठेस लगती मेरे लिए भी तुझे कभी 

तो कोई अपना हो जाता 

जो देखा भी नहीं था वही सपना हो जाता 

इस तरह संवेदनाओ को छोड़ते देख कर 

कैसे खुश हो जाऊ देह पर 

होता नहीं मुझसे -

सुबह तक खीच कर डोर आती नहीं 

जिसके सहारे दिन की किरणों में 

कुछ देख लू ---इसलिए जाओ अपनी मंजिल की ओर

तुम्हारा मन लगाने वाले बहुत मिलेंगे 

मुझे भी तन धन के साथ मन की दुनिया चाहिए 

क्यूंकि वही मेरा स्टार्टर है --वर्ना रुका है सफ़र 

इंजन ,गाडी ,पटरी चाहे हो पर 

संचालक न हो --सब व्यर्थ हो जाता है 

मान बैठी थी वही ये भूल थी नहीं 

ऐसा ही दिखया बताया गया था 

इस उत्पाद की सावधानिया नहीं लिखी थी 

और मुझे ख़रीदा ही नहीं गया था 

मै तो दान की वस्तु थी 

जैसे गाय ---पर उसे भी तो चारा मिलता है 

मेरे चारे की तो किसी ने पूछी ही न थी 

जो मर्जी आया डाल दिया सामने 

इतने बरस बीते पर आदत नहीं डली

कुछ भी खा लेने की ----जिन्दा रहने के लिए 

इसलिए प्राणों पर आ बनी है -----------------



इक दिन तो -

मैं ये सोच कर हर गम का कपडा पहनती रही कि फट जाएंगा

कभी आंसुओ को न रोका सोचा चलो सैलाब कुछ घट जाएंगा

मेरे हिस्से में मेरे किस्से में जो समय लिखा है वो कट जाएगा

ये बादल बरस कर कभी तो जीवन के आसमा से हट जाएगा

दिल को जो भी गलत लगता है वो इक दिन तो छट जाएगा ----------

Wednesday, 10 July 2013

रुक जाओ

किसे धिक्कारे और कब तक 

सरकार को -प्रशासन को ?


कोई कहता है माँ बाप संभाले उनकी जिम्मेदारी है 


बिलकुल सही यदि 


जन्म देने का गुनाह 


करोगे तुम अपने बच्चो को 


तो जिन्दा रखने के लिए शस्त्र अस्त्र भी उठाने ही होंगे 


पल पल प्रार्थना करना चाहे पैनी करना निगाह 


जब तक इतना इरादा न कर लो 


जन्म न देना -किसी धर्म के नाम पर 


किसी दाता के नाम पर 


खुद तो काट लेना तानो से भरी जिंदगी 


पर इन नन्हो को खौफ न देना 


रुक जाओ ,रुक जाओ 


माँ पिता बनने  से पहले सोच लो --उनका संभावित भविष्य 


अब बहुत देर से जागना भी


क्या होगा ,जब अंधेरा होने को है 

न्याय की बात वो समझे

 जिनके कंधो पर दायित्व ढोने को है 

चिड़िया चुग गयी खेत देखते रहो दूर से 


तेरे पास तो समय बस सोने को है



Monday, 8 July 2013

क्या समझाए ?

क्या समझाए ऐसे लोगो को

जो संवेदनाओं का ठेका लिए फिरते है

सम्मानित हुए मंचो पर -अपनी विधा के लिए

घरो में पहुच जबरदस्ती का भाव उडेलना

उबकाई आती है ऐसे साहित्यकारों से

घिन आती है ऐसे समाज सेवको से

बहुत अच्छे लगते है वो जो अपनी

मर्यादाये नहीं लांघते

दिल करता है

उन्हें ढूंढ़ ढूंढ़ कर लाया जाये

और शांति से रहने का ही

नया सम्मान प्रारंभ किया जाये

वो जो हस्तक्षेप नहीं करते

किसी दुसरे की दुनिया में

बिना इज़ाज़त

दूसरो के समय और गोपनीयता

का बलात्कार करते फिरते है

इन्हें रोको ---इन्हें कोई तो टोको

Saturday, 6 July 2013

देह के दरिन्दे

उसकी अदा है उसका भोला पन


सबको हँसाती ,रूलाती सी


कहाँ मिलता है वो नग्नता में


कहाँ सजने संवरने से आता है


वो तो अंतर में छुपा वो सौन्दर्य


आँखों से छलकता सा


वो मूर्ख नहीं है वो भोली है


उसे कभी इतना दुखी न करना


कि उसका साथ छूट जाए


उसकी ये सादगी ,गाली बन जाए


कैसे बचे ये बच्चिया


इन देह के दरिंदो से ----


कैसे जीते इन संवेदनहीनो  को ----

Thursday, 4 July 2013

सेना का लोकतंत्र

सेना करेगी मिश्र  में लोकतंत्र की रक्षा 
क्या  लगता है आप को संभव है ऐसा 
एक वर्ष के शिशु लोकतंत्र का हाल देखो 
किया आक्रोशित जनता ने बवाल  देखो 
दूध के जले है --छाछ तो जरा छान ले 
क्यूँ अब सब ठीक  होगा कैसे  मान ले 
 सैन्य बल की   छत्र छाया में लोकतंत्र 
 नया सा अनुभव अनोखी सी ये बात 
 लोकतंत्र से मानव को जीवन मिलेगा 
अधिकारों को सरकारी आलम्बन मिलेगा  
ये स्वप्न देखना ही होगा 
बेईमानी जब तक होगी 
तब तक जनता यूँ ही 
आक्रोशित होती रहे 
यही इच्छा है
 प्रत्येक लोकतंत्र -की जीवन शैली के समर्थक की 
अपना आकाश देखने की चाहत 
अपनी जमीं के लिए अपनी बात 
जितनी क्षमता है उसे जी सके 
ऊर्जा को घुट के घूट घूट न पी सके 

 

Saturday, 29 June 2013

अब और नहीं

सोच रहे थे बेचारे वो हम नया कुछ देंगे इस जकड़े हुए समाज को 
पर ये क्यूँ दिल टूट रहे है अब  युवाओं के 
लीविंग रिलेशन शिप में भी -
एक दूजे को छोड़ रहे 
गे -लेस्बियन बन न्याय मांग रहे है 
जीना का नया रास्ता जोड़ रहे 
ये   सारी दुनिया यूँ ही चलती जा रही है 
आपदाओं की तीव्रताभी बढती जा रही है 
कोई भी आत्मग्लानि के तट पर ही नहीं 
यूँ कुदरत का अन्याय भी कहता है कोई 
वो तो सोचने समझने का वक्त दे रही है 


अब और नहीं -की चित्कार कर उठी ये प्रकृति 
कैसे समझेंगे  नीयत नीति एक ही है फलती 
चले आये सभी अपने गंदे  चोले  उतार कर -
सत्य के वस्त्र आपकी हमारी - प्रतीक्षा में है
जो हमारे अन्दर है उसे बाहर ढूँढ रहे 

Thursday, 27 June 2013

सजा

मैंने बहुत बार मारना  चाहां उसे 
वो मरती ही नहीं 
क्या है वो -?
मेरे मन की 
या तेरी तन की चाहत 
दोनों का सामजंस्य 
निभाना 
जीवन भर 
पर फिर भी 
तेरी चाहत मेरी चाहत 
मित्र न बन सके 
मुहब्बत 
इश्क 
प्रेम 
जूनून तो क्या बन सकेंगे 
मुझमे कुछ भरा है 
उसी की तलाश में 
बेचैन हूँ 
कौन सी धारा 
लगनी चाहिए मुझ पर 
और क्या सजा निर्धरित् मिले